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मीडिया और पत्रकारिता दोनो अलग अलग विषय

पत्रकारिता के मुख्य तत्व

पत्रकारिता के मुख्य तत्व :
पत्रकरिता का जन्म तो देवलोक में ही हो चुका था, जो सतयुग, द्वापर, त्रेतायुग और अब कलयुग में भी ब दस्तूर जारी है। हालाकि समय के अनुसार अनुसार पत्रकारिता का स्वरूप और माध्यम जरूर बदलता रहा है किंतु मकसद पत्रकारिता का आज भी वही है। विश्व के सबसे पहले पत्रकार नारद जी ही हुए, इसीलिए नारद जयंती को पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। अनेकों ग्रंथ लिखने वाले ऋषि मुनि भी पत्रकारिता की श्रेणी में ही आते हैं।
आज के युग में पत्रकारीता के मुख्य स्तंभ – प्रिंट मीडिया यानी अखबार व पत्रिकायें, रेडियो, टीवी चैनल पत्रकारिता, डीजीटल मीडिया या सोशल मीडिया यानी वेब पत्रकारीता आदि।
वैसे एक अच्छे पत्रकार में मनोवैज्ञानिक, कुशल लेखक, वक्ता, वकील और गुप्तचर के गुणों का समावेश होना चाहिए। पत्रकारिता समाज का आईना है । वह मनुष्य की आस्थाओं, विचारों, मूल्यों को सही रूप में जनता के सामने रखती है। ऐसे में पत्रकारिता का लक्ष्य क्या हुआ ? इसका उत्तर होगा साहित्यिक-कलात्मक रुझान को बढ़ाना, नैतिक तथा सामाजिक मूल्यों की प्रतिष्ठा करना, भौतिकवादी दुनिया में सही मार्ग दिखाना, सुखी जीवन के द्वार खोलना आदि । पत्रकरिता और राजनीति का चोली दामन का साथ है, पुलिस और पत्रकारिता का भी चोली दामन का साथ है लेकिन अंतिम हिस्से में पत्रकारिता के छदम रूप यानि राजनीति आ जाती है जिसने आम इंसान को, क़्या पत्रकारिता को भी पांच स्वरुपों में बाँट दिया है? जिसमें राष्ट्रवाद, कम्युनिस्म, दलगत, सनातन व गैर सनातन जैसे शब्द शामिल हो गए हैं जिनमें बिम्ब प्रतीकों के रूप में हम पांचो यहाँ खड़े दिख रहे हैं।
हम जानते ही हैं कि सच्चाई”, “सटीकता”, और “निष्पक्षता” पत्रकारिता की नैतिकता की आधारशिला हैं।
मीडिया के कई रूप हो सकते हैं मीडिया यानी माध्यम, किसी भी काम को करने अथवा करवाने का सशक्त माध्यम या तकनीक या यूं कहें कि अपनी बात या संदेश आमजन तक पहुंचाना ही मीडिया है।
1908 का प्रेस अधिनियम ब्रिटिश भारत में सभी प्रकार के प्रकाशनों पर सख्त सेंसरशिप लागू करने वाला कानून था। कट्टरपंथी भारतीय राष्ट्रवाद माने जाने वाले समर्थन को बढ़ावा देने में भारतीय स्थानीय भाषा और अंग्रेजी भाषा के प्रभाव को कम करने के लिए यह उपाय लागू किया गया था। हम यह भी जानते हैं कि स्वीडन दुनिया का पहला देश था जिसने 1766 के प्रेस स्वतंत्रता अधिनियम के साथ प्रेस की स्वतंत्रता को अपने संविधान में अपनाया। हम यह भी जानते हैं ही कि पत्रकारिता में पीसीआई अधिनियम + प्रेस परिषद अधिनियम -1978, पीसीआई नियम + प्रेस परिषद (व्यक्ति संगमों की अधिसूचना हेतु प्रक्रिया) नियम- 2021, प्रेस परिषद (सदस्यों के नामांकन की प्रक्रिया) नियम-1978, पीसीआई विनियम + प्रेस परिषद (अधिवेशनों तथा कारोबार के संचालन की प्रक्रिया) विनियम-1979 व प्रेस परिषद (जांच प्रक्रिया) विनियम-1979 मूल रूप से भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियां हैं।
लेकिन वर्तमान समय में हमारा दुर्भाग्य यह है कि न पत्रकारिता के निजी संस्थान पत्रकारिता करने वाले छात्रों को इसकी व्यापकता का आभास कराते हैं और न ही वर्तमान में 95 प्रतिशत पत्रकार अपने अधिकारों व शक्तियों के बारे में ज्ञान रखते हैं। बाजारू पत्रकारिता ने मोल भाव तो सिखा दिया लेकिन पत्रकारिता कहीं दूर जाकर छिटक सी गई।
बहरहाल हम सभी पत्रिकारिता की वह धुरी कहे जा सकते हैं जो पत्रकारिता के पांचो फॉर्मेट में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, वेब, रिसर्च व विज्ञापन के खांचे में ढले कहे जा सकते हैं। मुझे गर्व है कि हम में से एक पर भी पत्रकारिता की आड़ में गोरखधंधा, वसूली, ब्लैकमेलिंग इत्यादि कोई आरोप आजतक नहीं लगे।
हाँ… मैं अब घर गृहस्थी के परिवेश में आकर जरूर इस स्वरुप में अपने अंदर कुछ खामियां महसूस करने लगा हूँ लेकिन इन सभी खामियों से काफी दूर हूँ।
मीडिया और पत्रकारिता दोनो अलग अलग विषय हैं, मीडिया पत्रकार नही हो सकता है आज देश में बड़े बड़े व्यवसायिक संस्था मीडिया हाऊस चला रहे हैं लेकिन पत्रकार वहा बा मुश्किल ही मिल पाएगा। ये बहुत लंबा विषय है जिस पर पूरी किताब, पूरा ग्रंथ लिखा जा सकता है। लेकिन यह एक गंभीर विषय है और पत्रकार ढूंढने से भी नही मिल पाएगा, मीडिया वाले हजारों मील जायेंगे। क्योंकि देश में पत्रकरिता की आड़ में कई नामी गिरामी संस्थाएं पत्रकार बनाने की इंस्टीट्यूट चला रहे जो कमाई का जरिया समझ कर इस छेत्र में हाथ पांव मार रहे लेकिन, पत्रकारिता की नैतिक मूल्यों से अनभिज्ञ हैं। यही वजह है की पत्रकारिता का ह्रास हुआ है उसके ऊपर से विश्वास उठ गया है।

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