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एफआईआर दर्ज होने पर पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने X पर सीएम योगी आदित्यनाथ को लिखा अपना जवाब

आदरणीय योगी आदित्यनाथ जी,

आपको आदरणीय “सिर्फ” इसलिए लिख रहा हूं कि आपके नाम पर मेरे खिलाफ लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में जो एफआईआर दर्ज की गई है, उसमें आपको ईश्वर का अवतार बताया गया है।

अब आप चूंकि वैदिक ग्रंथावली के “एको अहं, द्वितीयो नास्ति” सिद्धांत के आधार पर हजरतगंज कोतवाली की एफआईआर में भगवान का दर्जा पा चुके हैं, इसलिए मैं न चाहते हुए भी आपको आदरणीय लिखने के लिए विवश हूं। आखिर मैं ईश्वर का अपमान कैसे कर सकता हूं?
तो हे! हजरतगंज कोतवाली के दस्तावेजों में दर्ज मेरे समय के ईश्वर, आप अपनी सरकार पर ठाकुरवाद के आरोप से इतना कुपित क्यों हैं? क्यों इतना व्यथित हैं आप?

क्यों आपको लगता है कि आपके ईश्वरत्व पर कोई आघात हो गया है? आप एक-दो नहीं 36 एफआईआर मुझ पर करा दीजिए, मुझे उससे उतना ही फर्क पड़ता है जितना काशी के पंडितों की चुनौती के आगे अद्वैत सिद्धांत के प्रतिपादक आदि शंकराचार्य को पड़ा था। सत्ता के नशे में स्वयं को पुरूरवा व इंद्र से भी प्रतापी समझने वाली निस्तेज और रीढ़विहीन परंपरा के संवाहकों की छत्रछाया में कराई गई इस तरह की “दो कौड़ी” की एफआईआर बतौर पत्रकार मेरे गले का स्वर्ण आच्छादित आभूषण है जिस पर मुझे जीवनपर्यंत अभिमान रहेगा।

आप बस मेरे इन सवालों का जवाब दीजिए।

1–आपके और आपके भक्तों के अंतस्थल में आखिर ठाकुरवाद के आरोपों से तीक्ष्ण मिर्च का महाद्वीप क्यों निर्मित हो गया है?

अब पहला उदाहरण लीजिए। आखिर शिशिर सिंह में ऐसा कौन सा चुंबकत्व है कि वे सालों से सूचना निदेशक की इतनी महत्वपूर्ण कुर्सी पर यूं चिपककर बैठे हैं कि कभी कभी तो लगता है कि स्टेशनरी की दुकानों पर फेविकोल की क्राइसिस न हो जाए?

क्या वे भी सीधे महर्षि विश्वामित्र के गुरुकुल से शिक्षा अर्जित करके किसी ईश्वरीय आदेश के तहत अपने ईश्वर का साथ देने के लिए अवतरित हुए हैं?

2– आखिर आपके मीडिया सलाहकार मृत्युंजय सिंह के मुख में स्वाति नक्षत्र में उपजे किस अमृत की बूंद गिर गई है कि चरणवंदन को ही अपने जीवन लक्ष्य का अभिनंदन समझने वाले एक औसत किस्म के पत्रकार को मीडिया सलाहकार के सिंहासन का अमरत्व मिल गया है?

क्या आपने हमें दूध में सेरेलेक घोलकर पीने वाला बच्चा समझ रखा है कि हम इतना भी न समझ पाएं!!

3- ये चीफ सेक्रेटरी मनोज सिंह, प्रिंसिपल सेक्रेटरी दीपक सिंह, संजीव सिंह, अमित सिंह, ईशान प्रताप सिंह, राजभूषण सिंह, रईस सिंह……आदि आदि कौन हैं जिन्होंने आपके सीएम सेक्रेटेरिएट में सबसे प्रभावशाली घेरा बना रखा है?

क्या ये कालिदास के महान ग्रंथ मेघदूत के निष्काषित यक्ष हैं जो रास्ता भटकर गलती से आपके सीएम सेक्रेटेरिएट के स्वर्ण स्तंभ बन गए हैं?

4–आखिर ये अमिताभ यश सिंह कौन हैं, जो एक के बाद दूसरे विवादित एनकाउंटरों की प्रेतछाया से घिरे होने के बावजूद दैत्य गुरु शुक्राचार्य की अनिर्वचनीय संजीवनी को पीकर अजर-अमर हो गए हैं।

इनकी ही मां के नाम से अयोध्या में सबसे मलाईदार समय में भूमि का सबसे मलाईदार टुकड़ा खरीदा गया था। स्टोरी समाचार पत्रों में छपी भी थी। आपने इनसे क्यों नही पूछा कि ये धन किसका था? कहां से आया? क्या संदेहास्पद भूमि सौदों के चक्रव्यूह में घिरी अयोध्या में इस तरह का सौदा उस एक अधिकारी के परिवार में हो सकता है जो एक बेहद ही संवेदनशील पद पर तैनात हो?

अपने “अधिकार क्षेत्र” के दायरे में आने वाली कार्यवाहियों के लिए आईपीएस जुगल किशोर तिवारी और अभिषेक वर्मा का सस्पेंशन व ट्रांसफर कर देने वाली आपकी व्यवस्था को अमिताभ यश के नाम पर लकवा क्यों मार जाता है? क्या सजातीयता की बंदूक से न्याय की देह के पांव पर गोली मारकर उसका भी हॉफ एनकाउंटर कर दिया जाता है?

या फिर क्या राजा रघु के दौर में कोई ऐसी आकाशवाणी हुई थी जिसमें कहा गया था कि कलियुग के इस प्रहर में अमिताभ यश सिंह सरीखे अधिकारी जन्म लेंगे जिनको मेरे वक्त के ईश्वर की सेवा में अपना जीवन समर्पित करना ही होगा।

अगर ऐसा है तो मैं आज से महान दार्शनिक नीत्शे को अपना आदर्श घोषित करते हुए इस बात का ऐलान करता हूं कि ईश्वर (असली ईश्वर) मर चुका है।

5– आखिर ये चप्पल में एक बेहद विवादित एनकाउंटर को अंजाम देकर अपना सार्वजनिक सम्मान कराने वाले और आपकी ही सरकार के जीओ को चप्पल की कील बनाकर फेंक देने वाले डीके शाही कौन हैं?

इन पर अभी तक कोई कार्यवाही क्यों नही हुई? एक निजी सम्मान समारोह में एक बेहद विवादित एनकाउंटर पर मीडिया से बात करने और राजनीतिक बयानबाजी करने का अधिकार इन्हें किसने दिया?

क्या रघुकुल की किसी अनाम वसीयत में इनका भी नाम दर्ज है कि इन्हें भी एक विशेष समय में मेरे वक्त के ईश्वर की सेवा के लिए चप्पल पहनकर अपने शौर्य और स्वामिभक्ति का परिचय देने के लिए अधिकृत किया गया है?

आप सत्ता में आकर जाति के नाम पर ‘अति’ करेंगे और कोई सवाल उठाए तो एफआईआर करेंगे?

6– हां, एक जरूरी नाम जो पुरानी लिस्ट में छूट गया था, अब वो भी लिखे देता हूं। आखिर ये प्रदेश के अपर महाधिवक्ता विनोद कुमार शाही कौन हैं जो आपको न्याय सूत्र के मूल प्रवर्तक महर्षि अक्षपाद गौतम से भी बढ़कर नज़र आते हैं?

क्या आपको किसी और अधिवक्ता में योग्यता के हडप्पाकालीन पुरावशेष भी नही दिखे जो शाही साहब को ही ये ईश्वरीय वरदान प्राप्त हुआ? आखिर उनकी टीम में और कौन कौन है? उन्हें किसने तैनात किया? वे जिन पदों पर काबिज हैं, उनका जलवा क्या है? क्या इसका पता लगाने के लिए जेम्स बॉंड सीरीज की स्पेक्टर फिल्म के अभिनेता डैनियल क्रेग को हॉलीवुड से बुलावा भेजा जाए जो आकर इसकी तफ्तीश करे?

आपको क्या लगता है कि आप अगर नही देख रहे या फिर जानबूझकर भी अनदेखा कर रहे हैं, तो ये नंगा सच किसी को दीख नही रहा है?

क्या आधुनिक महाभारत में श्रीकृष्ण, अर्जुन, विदुर, भीष्म सारे किरदारों को हटाकर केवल घृतराष्ट्र को ही जगह दी गई है और आपकी हमसे इसी किरदार का चरित्र निभाते रहने की अपेक्षा है? यही मेरे वक्त के ईश्वर का कथित ईश्वरीय न्याय है?

7– अब अंतिम बात, और ये बात ध्यान से सुनिएगा योगी जी। बात संख्या की तो है ही नही। बात आपके राज में ठाकुर होने के असर की है। उसके नाम पर मचे गदर की है।

मैंने ये बात लिखते हुए इसी ‘असर’ का हवाला दिया था कि आपके राज में ऐसे भी डीएम-एसपी हैं जिनका सरनेम सिंह है मगर जो दूसरी जातियों के हैं, वे भी इस ठाकुर राज या फिर सिंह राज की छत्रछाया में लाभान्वित हो रहे हैं क्योंकि आपके राज में यही माहौल जमीन के कतरे कतरे में घुल चुका है।

और हां, आपके राज में हुई इस दो कौड़ी की एफआईआर में लिखा है कि देश का कोई भी मुख्यमंत्री आपके आसपास भी नही है। तो हजरतगंज कोतवाली के प्रभारी विक्रम सिंह ने एफआईआर करने से पहले इस तथ्य की तफ्तीश किससे की?

क्या सीधे गृह मंत्री अमित शाह को फोन कर लिया था या फिर पीएमओ का नंबर डायल कर दिया था? या फिर किसी ईश्वरीय शक्ति ने सपने में आकर उनकी मेघा में इस महान सत्य का दिव्य उद्घाटन कर दिया था?

हालांकि उनके मामले में ऐसा हो भी सकता है। आखिर उनकी ही कोतवाली की इस एफआईआर में आपको ईश्वर घोषित कर दिया गया है। फिर वे गलत कैसे हो सकते हैं?

योगी जी, इसी कोतवाली में मेरे खिलाफ कुंडा के बाहुबली राजा रघुराज प्रताप सिंह के सिलसिले में एक एफआईआर पहले भी दर्ज हो चुकी है। मामला राजा रघुराज प्रताप सिंह और उनकी पत्नी रानी भानवी के बीच तलाक के मुकदमे का है।

मैने सिर्फ इसकी रिपोर्टिंग की है, जिसे मेरे बाद देश भर के अखबार और चैनलों ने फॉलो किया और आज तक लगातार कर रहे हैं। फिर भी आपके राज में कोर्ट में दाखिल दस्तावेज की रिपोर्टिंग करने पर एफआईआर ठोंक दी जाती है क्योंकि मामला राजा रघुराज प्रताप सिंह का होता है!!

आपको शायद शिशिर सिंह, मृत्युंजय सिंह या फिर संजीव सिंह ने बताया हो और अगर अब तक न बताया हो तो मैं बताए देता हूं कि इस मामले का भी आईओ आलोक कुमार सिंह नाम का व्यक्ति है। ये वो पुलिसकर्मी है जो इसी मामले में राजा की पत्नी रानी भानवी को अरेस्ट करने की धमकी दे चुका है।

एक महिला से बदसलूकी कर चुका है। उन्होंने आपसे शिकायत की। मामला अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बना मगर इस आईओ आलोक कुमार सिंह का बाल भी बांका नही हुआ? आखिर क्यों? क्या ये भी आपकी इसी ईश्वरीय परंपरा का राजदूत है जिसे अमरत्व की सजातीय परंपरा का वरदान हासिल है।

इस मामले की जानकारी लखनऊ के पुलिस कमिश्नर अमरेंद्र सिंह सेंगर को भी है। मैं खुद उनसे मिला। इसकी करतूत उनके सामने रखी। साक्ष्य दिए। तथ्य बताए। मगर अमरेंद्र सिंह सेंगर भी शायद ईश्वरत्व की इसी नायाब परंपरा के अमोघ सुरक्षा कवच से लैस हैं, इसलिए कार्यवाही तो छोड़िए, उन्हें इस मुद्दे पर मुझे बुलाकर जांच पड़ताल तक करने की फुर्सत नही मिली।

कभी कभी तो मुझे लगता है कि ऐसा सुरक्षा कवच तो शायद मोसाद और केजीबी के पास भी नही होगा जो मेरे वक्त के ईश्वर के विश्वस्त दरबारियों के पास है।

सो योगी जी, ठोंकिए मुकदमे। एक, दो, तीन…से लेकर अंतहीन।

आप डराएगा उन्हें जिनके मूल चरित्र में ही सरकार से उपकृत होना लिखा है। मेरे ऊपर आज तक किसी की एक चाय भर की रवादारी नही है। आप शायद पत्रकारों की ऐसी प्रजाति से वाकिफ नही होंगे, इसलिए शायद आपने सबको चारण परंपरा का मृत्युंजय ही समझ रखा है।

आप अपना हुक्म उन पर चलाइएगा, जिनके बेटे इसी लखनऊ में आपके ही राज में ताकत के रसूख में सरेआम एक गरीब को कुचलकर मार देते हैं और उस सजातीय पत्रकार के इस वीभत्स मामले में लखनऊ पुलिस उसके बेटे का नाम तक अपनी जुबान से लेने में कांप जाती है।

लखनऊ का हर पत्रकार, योगी जी फिर लिख रहा हूं, हर पत्रकार इस घटना के बारे में जानता है। समय जानता है, नाम जानता है और तो और जिस संस्थान ने इस घटना के बाद उस पत्रकार को निकाल बाहर किया था, वो भी इसकी एक एक डिटेल जानता है।

मगर मुझे मेरी एडिटोरियल स्टोरी पर लगातार नोटिस पर नोटिस भिजवाने वाली आपकी लखनऊ पुलिस के मुखिया आपके कमिश्नर अमरेंद्र प्रताप सिंह में दम नही है कि इस घटना की फाइल को रिओपेन कर दें क्योंकि मामला सजातीय है।

योगी जी, आपने शायद जीवन में कभी फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का नाम भी न सुना होगा, पर मैं आपके लिए उनका एक शेर लिखकर अपनी बात समाप्त करता हूं-

“कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत
चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल पर ही डाले जाएँगे”

पत्रकार अभिषेक उपाध्याय की कलम से

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