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उत्तराखंड बनने का किसे हुआ फायदा

 

सारे देहरादून वासी सोए रहे जब मास्टर प्लान में आपत्ति जताना था, सब अपनी जमीन तक की आपत्तियों में ही सीमित रहे,तब सिर्फ दो अपत्तिया जनहित में दायर हुई थी, नोएडा से चौहान मैडम और पत्रकार रजनीश के शर्मा, जिसमे कई शहर के बढ़ते ट्रैफिक, एंबुलेंस के लिए रोड, मेट्रो रेल प्रोजेक्ट और नए दून के अलावा आउटर रिंग रोड मसूरी और ऋषिकेश में में लक्ष्मण झूला तक फ्लाईओवर, मिक्स यूज्ड मास्टर प्लान का विरोध आदि, एमडीडीए के सीमित स्टाफ में ऋषिकेश से कालसी तक छेत्र विस्तार एवम प्राधिकरण की अनदेखी अथवा मिलीभगत से, नदी रिसपाना को नहर रिसपना में तब्दील करना, नदियों में अतिक्रमण कर स्कूल, कॉलेज, हॉस्टल, होटल, शॉपिंग मॉल का निर्माण, शहर में बने डिवाइडर, मसूरी में हो रहे बेतरतीब निर्माण आदि, कई रिहाइसी इलाको को डिफेंस लैंड का विरोध, नदियों में खनन,
डोईवाला में नए दून का विरोध, आयोजनों और जलूसों आदि आदि कई मुद्दों को मुख्यमंत्री धामी और मास्टर प्लान आपत्ति कमेटी के समक्ष सुझाव के साथ रखा गया, रखा गया ।
मगर एक भी जनप्रतिनिधि, किसी वर्तमान या पूर्व प्रधान, पार्षद, विधायक, मेयर, सांसद ने विरोध नहीं किया,सब मलाई काट चुके, कुछ अभी भी लगे हैं खुरचन तक नहीं छोड़ेंगे नेतागण। ये प्रदेश का गठन ही दुर्भाग्यपूर्ण रहा,सिर्फ नेताओ ने मजे लिए, झोला छाप और दारू बेचने वाले व ब्याज में पैसा चलाने वाले और कुछ खड़िया माफिया, शराब माफिया और दलाल किस्म के लोगो ने प्रदेश को बुरी तरह से नोच डाला, अब जो है वो भी चापलूसी तक सीमित है और नेताओ की इच्छा शक्ति की कमी और अधिकारियों की मिलीभगत से सब खुर्द बुर्द हो गया, मूल निवास और भू कानून सही ढंग से सही समय पर न बनने से पहाड़ों के जमीन भी हरियाणा, पंजाब, यूपी, बिहार, दिल्ली, मुंबई, राजस्थान व गुजरात आदि से आए बाहरी लोगों ने ओने पोने दामों में खरीद लिया, जिसके केयर टेकर यही पहाड़ी लोग बनकर रह गए, अब न रोजगार, न जमीन सिर्फ चौकीदारी रह गया उत्तराखंडियों का भविष्य, सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है आज, इन सब का जिम्मेदार कौन है..? हरीश रावत जी, आप तो मुख्यमंत्री रहे है आज फारिख ही जिम्मेदारी से कभी सोच कर देखना फुरसत से फिर उत्तराखंडियत की बात करना।
वैसे कई अच्छे काम उत्तराखंड में अपनी सरकार के दौरान अल्प समय में हरदा ने किया जिसकी हमने सराहना भी की और साथ भी खड़े रहे।

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